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Karmyog by Swami Vivekananda in Hindi (कर्मयोग)
Karmyog by Swami Vivekananda in Hindi (कर्मयोग)
Karmyog by Swami Vivekananda in Hindi (कर्मयोग)

Karmyog by Swami Vivekananda in Hindi (कर्मयोग)-In Paperback

Original price was: ₹125.00.Current price is: ₹124.00.

किताब के बारे में

कर्मयोग -: हमें सिखाता है कि जीवन में कर्म करना अपरिहार्य है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम किस भाव और समझ के साथ कर्म करते हैं। स्वामी विवेकानंद इस पुस्तक में निष्काम कर्म के सिद्धांत पर जोर देते हैं, अर्थात् फल की इच्छा किए बिना कर्तव्य का पालन करना। वे बताते हैं कि स्वार्थ रहित कर्म ही हमें बंधन से मुक्त कर सकता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जा सकता है।यह पुस्तक विभिन्न उदाहरणों और दृष्टांतों के माध्यम से कर्मयोग के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने दैनिक जीवन के साधारण कार्यों को भी योग में परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे हमारा जीवन अधिक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बन सके। ‘कर्मयोग’ उन सभी के लिए एक मार्गदर्शक है जो जीवन में सफलता और शांति प्राप्त करना चाहते हैं और कर्म के सही स्वरूप को समझना चाहते हैं। यह हमें कर्म के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाती है।

लेखक के बारे में

स्वामी विवेकानंद, जिनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में अटॉर्नी (वकील) थे और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। बचपन से ही नरेंद्र कुशाग्र बुद्धि के थे और उनकी धर्म तथा आध्यात्म में गहरी रुचि थी।शुरुआत में वे ब्रह्म समाज से जुड़े, लेकिन उन्हें वहां संतोष नहीं मिला। अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए वे कई साधु-संतों के पास गए और अंततः उन्हें रामकृष्ण परमहंस में अपना गुरु मिला। रामकृष्ण परमहंस के रहस्यमय व्यक्तित्व और शिक्षाओं ने नरेंद्र के जीवन को पूरी तरह बदल दिया।25 वर्ष की आयु में नरेंद्रनाथ ने संन्यास ले लिया और ‘विवेकानंद’ के नाम से जाने जाने लगे। उन्होंने पूरे भारतवर्ष की पैदल यात्रा की और देश की गरीबी और दुर्दशा को करीब से देखा। उनका मानना था कि ‘मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है। 1893 में, स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत और सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। उनके प्रभावशाली भाषण ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता से परिचित कराया। उन्होंने वेदांत और योग को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उन्होंने 1897 में अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। यह मिशन शिक्षा, चिकित्सा सहायता, आपदा राहत और जनजातियों के कल्याण जैसे सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से संलग्न है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो’ का नारा दिया।वे भारतीय राष्ट्रवाद के प्रमुख प्रतीक और एक देशभक्त संत के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्मदिन 12 जनवरी को भारत में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 4 जुलाई, 1902 को मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।

कर्मयोग पुस्तक किसने लिखी है और इसका मूल उद्देश्य क्या है?

यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित है, जिसका उद्देश्य है कर्म को एक आध्यात्मिक साधना के रूप में समझाना।

कर्मयोग का मूल सिद्धांत क्या है?

इसका मूल सिद्धांत है निष्काम कर्म – अर्थात् बिना फल की इच्छा के कर्म करना।

कर्मयोग किस प्रकार बंधन से मुक्ति दिलाता है?

जब हम फल की चिंता किए बिना कर्म करते हैं, तो हम आसक्ति से मुक्त होकर मोक्ष की ओर बढ़ते हैं।

कर्मयोग पुस्तक में कौन-कौन से दृष्टांत या उदाहरण दिए गए हैं?

स्वामी विवेकानंद ने व्यावहारिक उदाहरणों और कथाओं के माध्यम से कर्मयोग के गूढ़ अर्थ को सरल भाषा में बताया है।

कर्मयोग का आधुनिक युग में क्या महत्त्व है?

आज के तनावपूर्ण और स्वार्थपूर्ण वातावरण में, यह पुस्तक सच्चे कार्य, सेवा और संतुलन का मार्ग दिखाती है।

Additional information

Weight 0.100 g
Dimensions 21.59 × 13.97 × 0.5 cm
Author

Swami Vivekanand

Pages

114

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN10 : 9363239187

SKU 9789363239180 Category Tags ,