चित्र-विचित्र

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हास्‍य लिखने के लिए तो आपको हास्‍य समझना आना चाहिए फिर उसे शब्‍दों में ढालना आना चाहिए और मंच पर हैं तो उसे सुनाना भी आना चाहिए और इन सबसे बढ़कर अगर अपने पर पड़े तो उसे बर्दाश्‍त करना भी आना चाहिए। नीरज पुरी में यह गुण मौजूद हैं और जब तक यह गुण मौजूद उनकी लेखनी से लगातार हास्‍य-व्‍यंग की धारा प्रवाहित होती रहेगी।
विगत वर्षों में अपनी अलग पहचान बनाना, बहुत कठिन हो गया है। परन्‍तु सुखद स्थिति यह है कि श्री नीरजपुरी ने अपनी अलग पहचान बना ली है। इसी पहचान को सार्थकता प्रदान करने की दृष्टि से उन्‍होंने कविताओं के दूसरे संकलन (पहला “बूंदा-बांदी”) के प्रकाश का शुभ-संकल्‍प लिया है।

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