विनोद प्रिय प्रभु

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जब हमारी सुबह हंसी और प्रेम की ताल से हो तो परमात्‍मा स्‍वयं हमारे जीवन में नृत्‍य करने लगेगा। सुबह हंसते हुए (प्रसन्‍नचित) उठना ही सच्‍ची प्रार्थना है।
समग्र प्रकृति आपकी हंसी की प्रतीक्षा में है। आप हंसते हैं तो सारी प्रकृति आपके साथ हंसती है। चारों ओर इसकी प्रति ध्‍वनि गूंज उठती है। सारा वातावरण आनंदमय हो उठता है।
श्री श्री रविंशकरजी के इस प्रवचन संग्रह के अध्‍ययन से लाखों लोगों की शंकाओं के बादल छट गए और उनके चेहरों पर मुस्‍कान खिल गई। नाचो, गाओ, उत्‍सव मनाओं क्‍योंकि कि परमात्‍मा नटखट है, विनोद प्रिय है।
ISBN10-8128823191

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