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मैं यह सब सुनाते समय अपने सद्गुरू भगवान श्री रजनीश जी को कैसे भूल सकता हूँ उन्हीं की कृपा से और अनुमति से तो यह घटना घटी है- यह सौ प्रतिशत निश्चित सत्य है। गुरू ही अपने शिष्य के योगक्षेम का एकमात्र कर्त्ता होते है। उनकी यह अपार कृपा है मुझ पर जिसके प्रमाण स्वरूप जगज्जननी माँ के चरणों में विश्रांति प्राप्त करना हुआ है। मैं माँ और भगवान में कोई भेद देखता ही नहीं। माँ ही भगवान है और भगवान ही माँ है।
ISBN10-935920367X
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