Karamyog : Bhagwat Gita Ka Manovigyan – Bhag -3 (कर्मयोग : भगवद् गीता का मनोविज्ञान – भाग -3)

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कर्मयोग का आधार-सूत्र अधिकार है कर्म में, फल में नहीं, करने की स्‍वतंत्रता है, पाने की नहीं। क्‍योंकि करना एक व्‍यक्ति से निकलता है, और फल समष्टि से निकलता है। मैं जो करता हूं, वह मुझसे बहता है, लेकिन जो होता है, उसमें समस्‍त का हाथ है। करने की धारा तो व्‍यक्ति की है, लेकिन फल का सार समष्टि का है। इसलिए कृष्‍ण कहते हैं, करने का अधिकार है तुम्‍हारा, फल की आकांक्षा अनधिकृत है। लेकिन हम उलटे चलते हैं, फल की आकांक्षा पहले और कर्म पीछे। हम बैलगाड़ी को आगे और बैलो को पीदे बांधते हैं कृष्‍ण कर रहे हैं, कर्म पहले, फल पीछे आता है – लाया नहीं जाता। लाने की कोई सामर्थ्‍य मनुष्‍य की नहीं है, करने की सामर्थ्‍य मनुष्‍य की है क्‍यों? ऐसा क्‍यों है- क्‍योंकि मैं अकेला नहीं हूं, विराट है।

About the Author

ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है। हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।

ISBN10-9354869130

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