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संगति सुमति न पावहीं परे कुमति कै धंध।
राखौ मेलि कपूर मैं, हींग न होइ सुगंध॥
जैसे “रामचरितमानस” के लिए तुलसीदास प्रसिद्ध हुए ठीक उसी प्रकार ‘सतसई’ के लिए बिहारीलाल प्रसिद्ध हुए। उपर्युक्त पद एक असाधारण उदाहरण है उनके कलेवर का। यह पुस्तक रांगेय राघव की पठनीय ही नहीं विश्वनीय भी है, जो आपको बिहारी के जीवन को नजदीक से देखने की सामर्थ्य रखती है।
ISBN10-9355991029
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