राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीन नवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए सतत साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क में गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की। जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की। यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।
‘जीने के लिए’ के बाद यह मेरा दूसरा उपन्यास है। वह बीसवीं सदी ईसवी का है और यह ईसापूर्व 500 का। मैं मानव समाज की उषा से लेकर आज तक के विकास को बीस कहानियों (वोल्गा से गंगा) में लिखना चाहता था। उन कहानियों में एक इस समय (बुद्ध काल) की भी थी। जब लिखने का समय आया, तो मालूम हुआ कि सारी बातों को कहानी में नहीं लाया जा सकता; इसलिये ‘सिंह सेनापति’ उपन्यास के रूप में आपके सामने उपस्थित हो रहा है।
‘सिंह सेनापति’ के समकालीन समाज को चित्रित करने में मैंने ऐतिहासिक कर्तव्य और औचित्य का पूरा ध्यान रखा है। साहित्य पालि, संस्कृत, तिब्बती में अधिकता से और जैन साहित्य में भी कुछ उस काल के गणों (प्रजातंत्रों) की सामग्री मिलती है। मैंने उसे इस्तेमाल करने की कोशिश की है। खान-पान, हास-विलास में यहाँ कितनी ही बातें आज बहुत भिन्न मिलेंगी, किन्तु वह भिन्नता पुराने साहित्य में लिखी मौजूद हैं।
ISBN10-9359200093
Business and Management, Diamond Books, Economics