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ओशो द्वारा शून्यता की साधना–ओशो द्वारा सूफी, झेन एवं उपनिषद की कहानियों एवं बोध-कथाओं पर दिए गए सुबोधगम्य 19 अमृत-प्रवचनों की श्रृंखला ‘बिन बाती बिन तेल’ में से संकलित पांच (11 से 15) प्रवचन जिसके अनुसार झेन फकीर कहते हैं, संन्यासी ऐसा हो जाता है जैसे वृक्ष की छाया। संन्यासी अपने को हटा लेता है दूसरों के मार्ग से। वह शोरकुल नहीं करता। वह किसी को बाधा नहीं देता। वह छाया की भांति हो जाता है। डोलता जरूर है, लेकिन धूल हिलती नहीं। ऐसा- नहीं जैसा हो जाने का नाम संन्यास है। और वहीं कुंजी है संसार के बाहर जाने की। तुम संन्यस्त हुए कि जिनने तुम्हें कारागृह में बांधा है, वे द्वार खोल देंगे। अगर वे द्वार अभी भी बंद किए हैं तो उसका मतलब इतना है कि तुम अभी भी बैठ जागे, जीवन से भरे, इच्छा से भरे बैठे हो।
“शून्यता है महामुक्ति – ओशो द्वारा शून्यता की साधना” ओशो द्वारा दी गई शिक्षाओं का सार है, जिसमें वे शून्यता (emptiness) को अंतिम मुक्ति या मोक्ष के रूप में समझाते हैं। ओशो के अनुसार, शून्यता केवल खालीपन नहीं है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व का वह सर्वोच्च अनुभव है जहाँ कोई बंधन नहीं है, कोई इच्छाएँ नहीं हैं। यह मुक्ति की अवस्था है जिसमें व्यक्ति सभी मानसिक और भावनात्मक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
शून्यता का अर्थ है आंतरिक खालीपन या निर्वाण, जहाँ मन इच्छाओं, भावनाओं और बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। यह आत्मा की शुद्ध अवस्था है
ओशो के अनुसार, शून्यता ध्यान, आत्म-अवलोकन और आंतरिक शांति के माध्यम से प्राप्त होती है। जब मन सभी विचारों और इच्छाओं से मुक्त हो जाता है, तब शून्यता की अनुभूति होती है
शून्यता को महामुक्ति इसलिए कहा गया है क्योंकि यह मुक्ति का सर्वोच्च रूप है। इसमें व्यक्ति सभी सांसारिक बंधनों और दुखों से मुक्त होकर एक शांति और आनंद की अवस्था में पहुँचता है
नहीं, शून्यता का मतलब उदासी या नकारात्मकता नहीं है। यह एक गहरे आंतरिक संतुलन और शांति की अवस्था है जहाँ व्यक्ति बंधनों से परे होता है और आनंदित होता है।
शून्यता ध्यान के माध्यम से ही प्राप्त होती है। ध्यान मन को शांत करता है और उसे उस अवस्था में पहुँचाता है जहाँ सभी विचार समाप्त हो जाते हैं और केवल शून्यता का अनुभव होता है
नहीं, शून्यता जीवन से दूर होने का प्रतीक नहीं है। यह जीवन के गहरे सत्य को समझने और उसे पूरी तरह से जीने का प्रतीक है। इसमें व्यक्ति सभी सीमाओं से परे होता है और वास्तविक जीवन का आनंद लेता है।
Weight | 154 g |
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Dimensions | 13.97 × 0.69 × 21.59 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8171822304 |
Pages | 214 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171822304 |
आज मनुष्य के सामने दो ही विकल्प हैं: या तो एक सामूहिक आत्मघात या फिर चेतन्य में एक गुणात्मक छलांग! यह आनंदपूर्ण है कि ऐसे संक्रमण-काल में विश्वभर में लाखों लोग ओशो की जीवनदृष्टि से आंदोलित हो रहे हैं और एक नए मनुष्य को, एक नए विश्व को जन्म देने के लिए तैयार हो गए हैं। ओशो के क्रांतिकारी संदेश का स्रोत सत्य का उनका अपना अनुभव है। यह संदेश उन पंडितों की तोता-रटन नहीं है, जो अज्ञात के रहस्यों में प्रवेश करने के भय से शास्त्रों के वचन ओढ़ लेते हैं। ओशो के शब्द उनके अपने जिए हुए अनुभव से ओतप्रोत हैं। ये आननेय वचन एक जीवंत बुद्ध के सत्य से सिक्त हैं। यदि आप खुले ह्रदय से इन्हें पढ़ें तो ये वचन आपको आलोकित कर सकते हैं। सावधान — इस पुस्तक को खोलने वाला व्यक्ति शायद इसे बंद करते समय वही न रहे, जो वह खोलते समय था। याद रखें, सत्य की अग्नि इस क्षण के पार, जीवन का कोई वचन नहीं देती| ISBN10- 8171822304
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