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ओशो की जीवंत उपस्थिति को शब्दों में अभिव्यक्त करना संभव नहीं है। हां, संगीत से कुछ इशारे हो सकते हैं, इंद्र-धनुषी रंगों से कुछ चित्र चित्रित हो सकते हैं।
मौन को, शून्य को, आनंद को जिसने अनुभूत कर लिया हो, उसने ओशो को जरा जाना, जरा समझा। सच, ओशो को जीना हो तो ओशोमय होने के अतिरिक्त और कोई उपाय कहां है!
सुबह की ताजी, ठंडी हवाओं को आप कैसे अभिव्यक्त करेंगे? दो प्रेमियों के बीच घट रहे प्रेम के मौन-संवाद को आप कैसे कहेंगे? अज्ञेय को अनुभूत तो कर सकते हैं, लेकिन कहेंगे कैसे?
ओशो रहस्यदर्शी हैं, संबुद्ध हैं, शास्ता हैं, आधुनिकतम बुद्ध हैं। वे परम विद्रोह की अग्नि हैं, जीवन रूपांतरण की कीमिया हैं। ओशो की पुस्तकों को पढ़ना, अपने को पढ़ना है। स्वयं पढ़कर देख लें, स्वयं जी कर देख लें।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
उपनिषद शून्य संवाद में शून्यता का अर्थ है सभी विचारों, अहंकार और संसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना, जहाँ पूर्ण शांति और मौन की स्थिति होती है।
उपनिषद शून्य संवाद के लेखक ने शून्य को ब्रह्मांड की मौलिक स्थिति के रूप में प्रस्तुत किया है, जहाँ कोई भी भौतिकता या द्वैत नहीं होता, और यह आत्मा की शुद्धतम अवस्था है।
उपनिषद शून्य संवाद के अनुसार, शून्य संवाद का मतलब वह आंतरिक संवाद है जो व्यक्ति अपने अंदर मौन और शून्यता के माध्यम से करता है, जहाँ सभी विचार समाप्त हो जाते हैं और केवल शुद्ध चेतना बचती है।
उपनिषद शून्य संवाद में आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए ध्यान, शून्य में प्रवेश, और आंतरिक मौन का अभ्यास करने का मार्गदर्शन दिया गया है, जिससे व्यक्ति अपने सच्चे स्वरूप को पहचान सकता है।
उपनिषद शून्य संवाद में मौन को आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया गया है, क्योंकि मौन के माध्यम से व्यक्ति अपने मन की चंचलता से मुक्त होकर शून्य की स्थिति में प्रवेश करता है।
Weight | 140 g |
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Dimensions | 20 × 14 × 4 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8128808893 |
Pages | 152 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128808893 |
उपनिषद शून्य संवाद एक गहन पुस्तक है जो शून्यता और उपनिषदों के माध्यम से आत्मिक जागरूकता को उजागर करती है। इसमें संवाद के माध्यम से शून्यता की अवस्था, आत्म-ज्ञान, और परम सत्य की खोज पर चर्चा की गई है। यह पुस्तक व्यक्ति को शून्यता के साथ संवाद करने और ध्यान के माध्यम से आंतरिक शांति प्राप्त करने का मार्गदर्शन प्रदान करती है। आध्यात्मिकता की गहराई को समझने के लिए यह एक अद्वितीय रचना है।
ISBN10-8128808893
Religions & Philosophy, Books, Diamond Books
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