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यह एक ऐसे महापुरुष की संघर्ष-कथा है, जो कठिनाइयों में भी आत्मा से निर्देशित होते रहे। वह इंग्लैंड में पढ़े। आई.सी.एस. की परीक्षा पास की, पर देश-भक्ति के जुनून में पद ठुकरा दिया। भारत लौटकर बड़ौदा शासन के ऊंचे वेतन को छोड़कर राष्ट्रीय कॉलेज में थोड़े वेतन पर प्राचार्य हो गए । ‘वन्दे मातरम’ कलकत्ता से निकाला, जो क्रांतिकारियों और देश-भक्तों के लिए प्रेरणा स्रोत बना। जिसके कारण अंग्रेज सरकार उन्हें जेल भेजने के लिए जी-जान से जुट गई। श्री अरविन्दो स्वयं क्रांतिकारी थे, विचार से पूर्ण कर्मयोगी थे। वह जीने की अदृश्य दिशाएं खोलने का आवाहन करते हैं –
आओ, मुझे जानो! तमस से बाहर आकर सूर्य से चमको !!
यह तीर्थ-यात्रा है, महर्षि अरविन्दो के जीवन की पूर्व-कथा की, उत्तर- कथा के लिए पढ़िए, दूसरा भाग ‘अंतर्यात्रा’ ।
About the Author
सुविख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर का जन्म २ मई १९३८, अंबाला (हरियाणा) में हुआ और शिक्षा सेंट जोंस कालिज, आगरा और बीकानेर में।
शिक्षा : एम. ए. पी-एच. डी. डी लिट् आचार्य।।
साहित्य : चालीस से ऊपर उपन्यास। उनमें रेखांकित और चर्चित हुए दिल्ली चलो, सूरश्याम, महाबानो, नीले घोड़े का। सवार, राज राजेश्वर, प्रेम दीवानी, सिद्ध पुरुष, रिवोल्ट, परिधि, न गोपी न राधा, जोगिन, दहशत, श्यामप्रिया, गन्ना बेगम, सर्वोदय, तमसो मा। ज्योतिर्गमय, वाग्देवी, युगपुरुष अंबेडकर, महात्मा, अन्तहीन युद्ध, अंतिम सत्याग्राही, शुभप्रभात, वसुधा, विकल्प, मोनालिसा प्रभृति महाबानो प्रभृति।
नाटक : संध्या को चोर, सूर्याणी, ताम्रपत्र, रक्त ध्वज, माटी कहे कुम्हार से, दुरभिसंधि, महाप्रयाण, नायिका, गूंगा गवाह, मीरा, सारथिपुत्र, भोरमदेव प्रभृति।
कथा : गौरैया, चाणक्य की हार, लताए, मांग का सिंदूर आदि अनेक उपन्यास धारावाहिक प्रकाशित और आकाशवाणी से प्रसारित। अनेक कृतिया पर शोध कार्य। अनेक उपन्यास और कहानियां कन्नड़, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित। राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार के साथ शिखर सम्मान विशिष्ट साहित्यकार के रूप में, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार। आदि अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार।
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