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Abhyudaya Ram Katha-1 (अभ्युदय राम कथा-प्रथम भाग) रामायण की महाकाव्य कथा का पहला भाग है, जिसमें भगवान राम के जीवन के प्रारंभिक चरणों का वर्णन है। यह पुस्तक भगवान राम के आदर्श जीवन, धर्म के प्रति उनकी निष्ठा, और उनकी महानता का विस्तार से वर्णन करती है।
यह पुस्तक उन घटनाओं पर केंद्रित है जो भगवान राम के बचपन से लेकर उनके वनवास तक की यात्रा को दर्शाती है। भगवान राम की कहानी न केवल उनके साहस और संघर्ष की है, बल्कि यह हमें उनके धर्म, आदर्शों, और सत्यनिष्ठा की प्रेरणा भी देती है।
Abhyudaya Ram Katha-1रामायण की अमर गाथा को सरल और सुलभ हिंदी भाषा में प्रस्तुत करती है, जिससे यह सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए समझने योग्य और प्रेरणादायक है। यदि आप भगवान राम के जीवन की गहराई से जानना चाहते हैं और उनके आदर्शों से प्रेरणा लेना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए एक अमूल्य मार्गदर्शक है।
पुस्तक का परिचय:
भगवान राम का जीवन और उनके आदर्श:
रामायण की महाकाव्य कथा:
पाठक क्यों पढ़ें Abhyudaya Ram Katha-1:
निष्कर्ष:
Weight | 0.81 g |
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Dimensions | 21.59 × 13.97 × 3.8 cm |
Author | Narender Kohli |
ISBN | 8128400037 |
Pages | 136 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
ISBN 10 | 8128400037 |
ऋषि विश्वामित्र के समान मुझे और मेरे समय को भी श्रीराम की आवश्यकता है, जो इंद्र और रूढ़िबद्ध सामाजिक मान्यताओं की सताई हुई, समाज से निष्कासित, वन में शिलावत पड़ी, अहल्या के उद्धारक हो सकते जो ताड़का और सुबाहु से संसार को छुटकारा दिला सकते, मारीच को योजनों दूर फेंक सकते, जो शरभंग के आश्रम में ‘निसिचरहीन करौं महि का प्रण’ कर सकते, संसार को रावण जैसी अत्याचारी शक्ति से मुक्त करा सकते। किंतु वे मानव शरीर लेकर जन्में थे। उनमें वे सहज मानवीय दुर्बलताएं क्यों नहीं थी, जो मनुष्य मात्र की पहचान है? आदर्श पुरुष त्याग करते हैं, किंतु यह तो त्याग से भी कुछ अधिक ही था। जहां आधिपत्य की कामना ही नहीं थी। यह तो आदर्श से भी बहुत ऊपर मानवता की सीमाओं से बहुत परे कुछ और ही था। राम अपना तन अपनी इच्छा से निर्मित करते हैं, तभी तो माया को बांधकर, चेरी बनाकर लाते हैं। अष्टावक्र ने बताया, ‘मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्यज।‘ हे तात। यदि मुक्ति की इच्छा है, तो विषयों को विष के त्याग दें। कामना त्याग और मुक्त हो जा, आत्मा वही शरीर तो धारण करती है, जिसकी वह कामना करती है। शरीर तो हमारा भी निज इच्छा निर्मित ही है। बस आत्मा ने मन के साथ तादात्म्य कर लिया है। मन ने ढेर कामनाएं ओढ़ ली हैं, इंद्रिय सुख के सपने संजो लिए हैं। आत्मा ने उन्हीं कामनाओं की पूर्ति के लिए उपयुक्त शरीर धारण किए, जो सुख और दुख भोग रहा है। उन्हीं राम की कथा है- अभ्युदय जिसने पिछले तीस वर्षों से हिंदी के पाठक के मन पर एकाधिकार जमा रखा है।
ISBN10-8128400037
Osho, Books, Diamond Books, New arrival Hindi
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