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Antar Agni (Bhagwat Gita Ka Manovigyan) Bhag-5 अंतर-अग्नि (भगवद् गीता का मनोविज्ञान भाग- पाँच)
Antar Agni (Bhagwat Gita Ka Manovigyan) Bhag-5 अंतर-अग्नि (भगवद् गीता का मनोविज्ञान भाग- पाँच)
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Antar Agni: Bhagwat Gita Ka Manovigyan Bhag-5 (अंतर-अग्नि: भगवद् गीता का मनोविज्ञान भाग- पाँच)

Original price was: ₹250.00.Current price is: ₹249.00.

अंतर-अग्नि” ओशो की श्रृंखला का पांचवा भाग है, जिसमें वे भगवद् गीता के मनोविज्ञान को एक अनूठे दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं। इस पुस्तक में आत्मा की अग्नि, मन की गहराइयों और आत्मबोध की यात्रा पर ध्यान केंद्रित किया गया है। ओशो का विश्लेषण व्यक्ति को आत्मा और ब्रह्मांड के रहस्यों के साथ जोड़ता है।

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लेखक के बारे में

ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।

अंतर-अग्नि किसने लिखी है?

अंतर-अग्नि (भगवद् गीता का मनोविज्ञान भाग- पाँच) ओशो द्वारा लिखी गई पुस्तक है

यह पुस्तक किस विषय पर आधारित है?

यह पुस्तक भगवद् गीता के मनोविज्ञान और आत्मबोध पर आधारित है, जिसमें ओशो गीता के गहरे आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करते हैं।

क्या अंतर-अग्नि भगवद् गीता की व्याख्या है?

हाँ, अंतर-अग्नि में ओशो ने भगवद् गीता के मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्षों की गहन व्याख्या की है।

यह पुस्तक किसे पढ़नी चाहिए?

जो लोग भगवद् गीता, मनोविज्ञान, और आध्यात्मिकता में रुचि रखते हैं, उन्हें यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। साथ ही, जो आत्मबोध और आंतरिक शांति की खोज में हैं, उनके लिए यह बहुत उपयोगी है।

ओशो का क्या दृष्टिकोण है भगवद् गीता के बारे में?

ओशो का दृष्टिकोण गीता के पारंपरिक पाठ से भिन्न है। वे इसे मनोविज्ञान और आत्मा की जागरूकता के संदर्भ में देखते हैं।

इस पुस्तक से क्या सीखा जा सकता है?

यह पुस्तक आत्मबोध, आंतरिक संघर्षों का समाधान, और गीता के आध्यात्मिक मार्ग के माध्यम से जीवन में शांति प्राप्त करने के तरीकों के बारे में गहरी समझ प्रदान करती है।

Additional information

Weight0.2 g
Dimensions20.32 × 12.7 × 1.6 cm
Author

Osho

ISBN

8189605720

Pages

352

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

8189605720

Additional information

Weight0.2 g
Dimensions20.32 × 12.7 × 1.6 cm
Author

Osho

ISBN

8189605720

Pages

352

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Paperback

Language

Hindi

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Diamond Books

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8189605720

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अंतर-अग्नि भगवद्गीता का मनोविज्ञान शरीर के भीतर घर्षण पैदा करने की योगिक प्रक्रियाएं हैं। इस घर्षण से दो काम लिए जा सकते हैं। अनेक बार योगी अपने शरीर को इस घर्षण से उत्पन्न अग्नि में ही समाहित करते हैं। यह एक उपयोग है। यह मृत्यु के समय उपयोग में लाया जा सकता है। एक दूसरा उपयोग है, जिसका कृष्ण प्रयोग कर रहे हैं। योगियों में अपनी इच्छाओं को समर्पित करने की क्षमता होती है, अपनी इच्छाओं को समर्पित कर देते हैं। वह दूसरा उपयोग है, वह जीते-जी किया जा सकता है। उसमें और भी सूक्ष्म अग्नि पैदा करने की बात है। वह अग्नि भी भीतर पैदा हो जाती है। उस अग्नि से शरीर नहीं जलता, लेकिन शरीर के रस जल जाते हैं। उस अग्नि से शरीर नहीं जलता, लेकिन इच्छाओं के रस और आकांक्षाएं जल जाती हैं। उससे शरीर नहीं जलता, लेकिन इच्छाओं के जो सूक्ष्म तंतु हैं, वे जल जाते हैं। — ओशो ISBN10-8189605720

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