₹175.00 Original price was: ₹175.00.₹174.00Current price is: ₹174.00.
संभोग से समाधि की ओर भाग 1″ ओशो द्वारा लिखित एक अनूठी पुस्तक है, जो प्रेम, शारीरिक संबंध, और आत्मज्ञान के बीच के गहरे संबंध को समझाती है। इसमें ओशो बताते हैं कि कैसे संभोग केवल शारीरिक संतोष नहीं, बल्कि आत्मिक विकास की ओर एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह पुस्तक पाठकों को प्रेम और जीवन के गूढ़ रहस्यों की ओर ले जाती है।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है। हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
यह पुस्तक प्रेम, संभोग, और आत्मज्ञान के बीच के संबंधों पर केंद्रित है, जिसमें ओशो बताते हैं कि शारीरिक प्रेम आत्मिक विकास का एक मार्ग कैसे बन सकता है।
नहीं, यह पुस्तक शारीरिक संबंधों को आत्मिक विकास से जोड़ती है और बताती है कि कैसे संभोग से समाधि की ओर का सफर संभव है।
नहीं, ओशो की दृष्टि सार्वभौमिक है और यह विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों से परे जाकर प्रेम और आत्मज्ञान की बात करती है।
इस पुस्तक का मुख्य संदेश यह है कि प्रेम और संभोग एक गहरा अनुभव हैं जो व्यक्ति को आत्मिक जागरूकता और समाधि की ओर ले जा सकते हैं।
ओशो मानते हैं कि संभोग केवल शारीरिक संतोष नहीं है, बल्कि यह आत्मिक जागरूकता और गहरे प्रेम का एक अनुभव है, जो आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
Weight | 256 g |
---|---|
Dimensions | 19.8 × 12.9 × 0.2 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8171823408 |
Pages | 40 |
Format | Paper Back |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171823408 |
आज तक मनुष्य की सारी संस्कृतियों ने सैक्स का, काम का, वासना का विरोध किया है। इस विरोध ने मनुष्य के भीतर प्रेम के जन्म की संभावना तोड़ दी, नष्ट कर दी। इस निषेध ने… क्योंकि सच्चाई यह है कि प्रेम की सारी यात्रा का प्राथमिक बिन्दु काम है, सैक्स है 1 प्रेम की यात्रा का जन्म, गंगोत्री – जहां से गंगा पैदा होगी प्रेम की वह सैक्स है, वह काम है और उसके सब दुश्मन हैं। सारी संस्कृतियां, और सारे धर्म, और सारे गुरु और सारे महात्मा तो गंगोत्री पर ही चोट कर दी। वहीं रोक दिया। पाप है काम, जहर है काम । और हमने सोचा भी नहीं कि काम की ऊर्जा ही, सैक्स इनर्जी ही, अंततः प्रेम में परिवर्तित होती है और रूपांतरित होती है। क्या आपको पता है, धर्म श्रेष्ठतम अनुभव में ‘मैं’ बिल्कुल मिट जाता है, अहंकार बिल्कुल शून्य हो जाता है ? सैक्स के अनुभव में क्षण भर को अहंकार मिटता है। लगता है कि हूं या नहीं। एक क्षण को विलीन हो जाता है ‘मेरापन ‘ का भाव । दूसरी घटना घटती है : एक क्षण के लिए समय मिट जाता है, टाइम-लेसनेस पैदा हो जाती है। समाधि का जो अनुभव है, वहां समय नहीं रह जाता है। वह कालातीत है। समय विलीन हो जाता है। न कोई अतीत है, न कोई भविष्य – शुद्ध वर्तमान रह जाता है । दो तत्त्व हैं, जिसकी वजह से आदमी सैक्स की तरफ आतुर होता है और पागल होता है। यह आतुरता स्त्री के शरीर के लिए नहीं है पुरुष की, न पुरुष के शरीर के लिए स्त्री की है। यह आतुरता शरीर के लिए बिल्कुल भी नहीं है। यह आतुरता किसी और ही बात के लिए है। यह आतुरता है- अहंकार – शून्यता का अनुभव। लेकिन समय शून्य और अहंकार शून्य होने के लिए आतुरता क्यों है ? क्योंकि जैसे ही अहंकार मिटता है, आत्मा की झलक उपलब्ध होती है। जैसे ही समय मिटता है, परमात्मा की झलक उपलब्ध होती है। ISBN10-8171823408
Business and Management, Religions & Philosophy