प्रेमी काट कर अपना शीश दे देता है प्रीतम के चरणों में और रोता भी नहीं। बल्कि वह कहता है, ‘ले ले। इस मेरी दी हुई भेंट को तू स्वीकार कर लें। बस इतना ही बहुत। और जो दे रहा, वह कुछ फूल या पत्तियां या कुछ लड्डू-पेड़ा नहीं है। दे रहा है वह पनी जान और कह रहा है ‘ले लोगे न। स्वीकार करोगे न प्रभु? दे रहा हूं अपना सर्वस्व कहीं ठोकर तो नहीं मार दोगे यह कह के कि ‘तू पापी है, तू पीच है, इतने जन्मों से मुझसे दूर रहा है।‘ ऐसा कह के कहीं मुझे ठुकरा तो न दोगे? स्वीकार तो कर लोगो। न?
प्रेम की सीढ़ियां
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प्रेमी काट कर अपना शीश दे देता है प्रीतम के चरणों में और रोता भी नहीं। बल्कि वह कहता है, ‘ले ले। इस मेरी दी हुई भेंट को तू स्वीकार कर लें। बस इतना ही बहुत। और जो दे रहा, वह कुछ फूल या पत्तियां या कुछ लड्डू-पेड़ा नहीं है। दे रहा है वह पनी जान और कह रहा है ‘ले लोगे न। स्वीकार करोगे न प्रभु? दे रहा हूं अपना सर्वस्व कहीं ठोकर तो नहीं मार दोगे यह कह के कि ‘तू पापी है, तू पीच है, इतने जन्मों से मुझसे दूर रहा है।‘ ऐसा कह के कहीं मुझे ठुकरा तो न दोगे? स्वीकार तो कर लोगो। न?
Additional information
Author | Anandmurti Guru Maa |
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ISBN | 8128815059 |
Pages | 56 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128815059 |
SKU
9788128815058
Category Indian Philosophy
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