तुम्हारे बेहोश होने पर ही मन तुम्हारा मालिक हो जाता है। तब तुम बेहोश रहते हो, तब ही मन अपनी मर्जी चलाता है। फिर उस बेहोसी में तुम ऐसे-ऐसे काम कर जाते हो, जो शायद होश में तुम कभी भी नहीं कर पाओ। जितना ध्यान का रस गहरा होता जाएगा, उतना-उतना तुम्हारा मन और मन के विकार तुम्हारे देखते-देखते ही कम होने लग जाएंगे, उन्हें अलग से हटाना नहीं पड़ेगा।
मन से आजाद
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तुम्हारे बेहोश होने पर ही मन तुम्हारा मालिक हो जाता है। तब तुम बेहोश रहते हो, तब ही मन अपनी मर्जी चलाता है। फिर उस बेहोसी में तुम ऐसे-ऐसे काम कर जाते हो, जो शायद होश में तुम कभी भी नहीं कर पाओ। जितना ध्यान का रस गहरा होता जाएगा, उतना-उतना तुम्हारा मन और मन के विकार तुम्हारे देखते-देखते ही कम होने लग जाएंगे, उन्हें अलग से हटाना नहीं पड़ेगा।
Additional information
Author | Anandmurti Guru Maa |
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ISBN | 8128815083 |
Pages | 288 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128815083 |
SKU
9788128815089
Category Indian Philosophy
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