आज की दौड़ती जिंदगी में इंसान सुंदरता के प्रति तो जागरूक है किंतु अपने तक ही वह इस सुंदरता को सीमित रख पाया है। जिसके लिए उसे कीमती कृत्रिम वस्तुओं का सहारा लेना पड़ता है। जब तक मानव आंतरिक सौंदर्य को नहीं पहचान पाता उसकी बाह्य संदरता निरर्थक होती है। आचार्य श्री सुदर्शन महाराज ने अपने आत्म-कल्याण केंद्र के माध्यम से मानव के अंदर पनप रहे विकारों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया है। जिसमें आत्मचिंतन और साधना के मार्ग द्वारा जीवन को सुंदर, सुखी और आनंदमय बनाने का प्रयास किया जाता है। क्योंकि आत्म–कल्याण से ही संसार का कल्याण संभव है। ‘आत्म दीपो भव’ ही ‘जीवन को सुंदर कैसे बनाए’ पुस्तक का वास्तविक प्रेरक भाव है।
आर्चाय सुदर्शनजी महाराज