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“आरिफ़ा एविस द्वारा लिखित ‘मास्टर प्लान’ उपन्यास न केवल सामयिक है, बल्कि वह सार्थक मसलों को हमदर्दी से उठाता है। उपन्यास में दो धाराएं समांतर चलती है, मनुष्यों के श्रम की और माहौल में व्याप्त व्यवस्थागत नीतियों के मारक चरित्र की। यह इस रचना का केंद्रीय द्वंद्व है।”
– वरिष्ठ साहित्यकार, आनंद प्रकाश

“उपन्यास में सामाजिक ताने-बाने को कुशलतापूर्वक बुना गया है। इसमें लोगों के दुःख-दर्द, विधर्मी पड़ोसियों की इनसानियत, मॉब-लिंचिंग के माहौल में मुस्लिम-परिवार द्वारा गाय पालने पर उत्पन्न आशंका का माहौल, झोला-छाप डाक्टरों के कारनामे आदि का अच्छा चित्रण है, जो मुख्य कथा को बोझिल होने से बचाता है और रोचकता पैदा करता है।उपन्यास लिखना एक कठिन कार्य है, जिसे लेखिका ने कुशलता से साधा है। यह उपन्यास उनकी औपन्यासिक क्षमताओं के प्रति विश्वास जगाता है।
– वरिष्ठ व्यंग्यकार डा. सुरेश कान्त

“यह उपन्यास इस तथ्य का प्रमाण है कि सामाजिक यथार्थवाद का का तर्क ओढ़ी हुई पक्षधरता नही है बल्कि ठोस सामाजिक तर्क है. यहाँ पक्षधरता बिम्बाकंन या नारेबाजी की तरह आरोपित नही है, वह उपन्यास के वस्तुगत यथार्थ का और कथा के सरंचनात्मक पक्ष का बेहद जरूरी उपागम है. यही कारण है, यह उपन्यास बगैर किसी वाह्य आरोपण के अपना काम बड़ी सहजता से कर लेती है और उसके चरित्र आशा , रफी , रहमान भाभी सब मिलकर पाठक को उस अन्तर्दशा में लाकर छोड़ देते है जहाँ से वह खुद बखुद अपने निर्णय की खोज में निकल सकता है।
-युवा आलोचक -उमाशंकर परमार

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“आरिफ़ा एविस द्वारा लिखित ‘मास्टर प्लान’ उपन्यास न केवल सामयिक है, बल्कि वह सार्थक मसलों को हमदर्दी से उठाता है। उपन्यास में दो धाराएं समांतर चलती है, मनुष्यों के श्रम की और माहौल में व्याप्त व्यवस्थागत नीतियों के मारक चरित्र की। यह इस रचना का केंद्रीय द्वंद्व है।”
– वरिष्ठ साहित्यकार, आनंद प्रकाश

“उपन्यास में सामाजिक ताने-बाने को कुशलतापूर्वक बुना गया है। इसमें लोगों के दुःख-दर्द, विधर्मी पड़ोसियों की इनसानियत, मॉब-लिंचिंग के माहौल में मुस्लिम-परिवार द्वारा गाय पालने पर उत्पन्न आशंका का माहौल, झोला-छाप डाक्टरों के कारनामे आदि का अच्छा चित्रण है, जो मुख्य कथा को बोझिल होने से बचाता है और रोचकता पैदा करता है।उपन्यास लिखना एक कठिन कार्य है, जिसे लेखिका ने कुशलता से साधा है। यह उपन्यास उनकी औपन्यासिक क्षमताओं के प्रति विश्वास जगाता है।
– वरिष्ठ व्यंग्यकार डा. सुरेश कान्त

“यह उपन्यास इस तथ्य का प्रमाण है कि सामाजिक यथार्थवाद का का तर्क ओढ़ी हुई पक्षधरता नही है बल्कि ठोस सामाजिक तर्क है. यहाँ पक्षधरता बिम्बाकंन या नारेबाजी की तरह आरोपित नही है, वह उपन्यास के वस्तुगत यथार्थ का और कथा के सरंचनात्मक पक्ष का बेहद जरूरी उपागम है. यही कारण है, यह उपन्यास बगैर किसी वाह्य आरोपण के अपना काम बड़ी सहजता से कर लेती है और उसके चरित्र आशा , रफी , रहमान भाभी सब मिलकर पाठक को उस अन्तर्दशा में लाकर छोड़ देते है जहाँ से वह खुद बखुद अपने निर्णय की खोज में निकल सकता है।
-युवा आलोचक -उमाशंकर परमार

Additional information

Author

ARIFA AVIS

ISBN

9789352969104

Pages

96

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

9352969103