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Kala Akshar Bhains Barabar (काला अक्षर भैंस बराबर)

395.00

मुहावरें और कहावतें किसी भी भाषा की जान होते हैं। वे कथन-भंगिमा में चार चांद लगा देते हैं और उसे अभिधा और लक्षणा से आगे ले जाकर व्यंजना बना देते हैं। वे प्रयोक्ता के अभिप्राय को रोचकता तथा गूढ़ता प्रदान करते हैं। यदि हम किसी के बारे में यह कहें कि उसे भाषा का तनिक भी समुचित ज्ञान नहीं है तो हमारे कथन में कोई रोचकता नहीं होगी। परन्तु यही बात यदि यूं कहें कि उसके लिए तो ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ है, तो बात में कहावत की चाशनी घुल जाएगी और सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाएगा। मुहावरा अभिव्यक्ति में शान और जान दोनों डाल देता है। किसी की मुहावरेदार भाषा सुनकर हमें अहसास होता है कि हम ऐसे ख़ास व्यक्ति की बात सुन रहे हैं जो भाषा के सौन्दर्य से परिचित और अभिभूत है। मुहावरों और कहावतों की तरह ही लोकोक्तियों का प्रभाव भी ऐसा ही चमत्कारी होता है।

About the Author

बालस्वरूप राही
जन्म : 16 मई, 1936
जन्म-स्थान : तिमारपुर, दिल्ली
पिता का नाम : श्री देवीदयाल भटनागर
आजीविका : दिल्ली विश्वविद्यालय में ट्यूटर, ‘सरिता’ में अंशकालिक कार्य, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में सह-संपादक (1960-1978), ‘प्रोब इंडिया’ (इंग्लिश) के परिकल्पनाकार एवं प्रथम संपादक, भारतीय ज्ञानपीठ में सचिव (1982-1990), महाप्रबंधक, हिन्दी भवन।
प्रकाशन : मेरा रूप तुम्हारा दर्पण (गीत-संग्रह), जो नितांत मेरी हैं (गीत-संग्रह), राग विराग (हिन्दी का प्रथम ऑपेरा), हमारे लोकप्रिय गीतकार : बालस्वरूप राही (डॉ. शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित), जिद बाकी है, राही को समझाए कौन (गजल-संग्रह)। चलो फिर कभी सही (गजल संग्रह)
बालगीत संग्रह : दादी अम्मा मुझे बताओ, हम जब होंगे बड़े (हिन्दी व अंग्रेजी में), बंद कटोरी मीठा जल, हम सब से आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ, सम्पूर्ण बाल कविताएं।
संपादन : भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 8 वार्षिक चयनिकाएँ : भारतीय कविताएँ 1983, 1984, 1985, 1986, भारतीय कहानियाँ 1983, 1984, 1985, 19861
सम्मान तथा पुरस्कार : प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार (समाज कल्याण मंत्रालय), हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान, अक्षरम् सम्मान, उद्भव सम्मान, जै जै वन्ती सम्मान, परम्परा पुरस्कार, हिन्दू कॉलिज द्वारा अति विशिष्ट पूर्व छात्र-सम्मान, साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार केन्द्रीय हिन्दी संस्था का सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार।
विशेष : अनेकानेक कवि-गोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों आदि में सक्रिय भागीदारी। रेडियो, टी.वी. में अनेक कार्यक्रम। आकाशवाणी से एकल काव्य-पाठ। आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि-सम्मेलन में हिन्दी का प्रतिनिधित्व (2003)। टी.वी. तथा आकाशवाणी के अनेक वृत्तचित्रों, धारावाहिकों की पटकथा, आलेख, गीत। संगीत नाटक विभाग के अनेक ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों के लिए आलेख तथा गीत। दूरदर्शन द्वारा कवि पर वृत्तचित्र प्रसारण। संसदीय कार्य मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

Additional information

Author

Balswroop Rahi

ISBN

9789354869068

Pages

80

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

Amazon

https://www.amazon.in/dp/9354869068

Flipkart

https://www.flipkart.com/kala-akshar-bhains-barabar/p/itma667e77dd97c3?pid=9789354869068

ISBN 10

9354869068

मुहावरें और कहावतें किसी भी भाषा की जान होते हैं। वे कथन-भंगिमा में चार चांद लगा देते हैं और उसे अभिधा और लक्षणा से आगे ले जाकर व्यंजना बना देते हैं। वे प्रयोक्ता के अभिप्राय को रोचकता तथा गूढ़ता प्रदान करते हैं। यदि हम किसी के बारे में यह कहें कि उसे भाषा का तनिक भी समुचित ज्ञान नहीं है तो हमारे कथन में कोई रोचकता नहीं होगी। परन्तु यही बात यदि यूं कहें कि उसके लिए तो ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ है, तो बात में कहावत की चाशनी घुल जाएगी और सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाएगा। मुहावरा अभिव्यक्ति में शान और जान दोनों डाल देता है। किसी की मुहावरेदार भाषा सुनकर हमें अहसास होता है कि हम ऐसे ख़ास व्यक्ति की बात सुन रहे हैं जो भाषा के सौन्दर्य से परिचित और अभिभूत है। मुहावरों और कहावतों की तरह ही लोकोक्तियों का प्रभाव भी ऐसा ही चमत्कारी होता है।

About the Author

बालस्वरूप राही
जन्म : 16 मई, 1936
जन्म-स्थान : तिमारपुर, दिल्ली
पिता का नाम : श्री देवीदयाल भटनागर
आजीविका : दिल्ली विश्वविद्यालय में ट्यूटर, ‘सरिता’ में अंशकालिक कार्य, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में सह-संपादक (1960-1978), ‘प्रोब इंडिया’ (इंग्लिश) के परिकल्पनाकार एवं प्रथम संपादक, भारतीय ज्ञानपीठ में सचिव (1982-1990), महाप्रबंधक, हिन्दी भवन।
प्रकाशन : मेरा रूप तुम्हारा दर्पण (गीत-संग्रह), जो नितांत मेरी हैं (गीत-संग्रह), राग विराग (हिन्दी का प्रथम ऑपेरा), हमारे लोकप्रिय गीतकार : बालस्वरूप राही (डॉ. शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित), जिद बाकी है, राही को समझाए कौन (गजल-संग्रह)। चलो फिर कभी सही (गजल संग्रह)
बालगीत संग्रह : दादी अम्मा मुझे बताओ, हम जब होंगे बड़े (हिन्दी व अंग्रेजी में), बंद कटोरी मीठा जल, हम सब से आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ, सम्पूर्ण बाल कविताएं।
संपादन : भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 8 वार्षिक चयनिकाएँ : भारतीय कविताएँ 1983, 1984, 1985, 1986, भारतीय कहानियाँ 1983, 1984, 1985, 19861
सम्मान तथा पुरस्कार : प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार (समाज कल्याण मंत्रालय), हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान, अक्षरम् सम्मान, उद्भव सम्मान, जै जै वन्ती सम्मान, परम्परा पुरस्कार, हिन्दू कॉलिज द्वारा अति विशिष्ट पूर्व छात्र-सम्मान, साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार केन्द्रीय हिन्दी संस्था का सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार।
विशेष : अनेकानेक कवि-गोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों आदि में सक्रिय भागीदारी। रेडियो, टी.वी. में अनेक कार्यक्रम। आकाशवाणी से एकल काव्य-पाठ। आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि-सम्मेलन में हिन्दी का प्रतिनिधित्व (2003)। टी.वी. तथा आकाशवाणी के अनेक वृत्तचित्रों, धारावाहिकों की पटकथा, आलेख, गीत। संगीत नाटक विभाग के अनेक ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों के लिए आलेख तथा गीत। दूरदर्शन द्वारा कवि पर वृत्तचित्र प्रसारण। संसदीय कार्य मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य। सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

ISBN10-9354869068