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Nirmala (निर्मला) 

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मुंशी प्रेमचंद का “निर्मला” सामाजिक मुद्दों को गहराई से छूने वाला उपन्यास है, जिसमें दहेज प्रथा, असमान विवाह और महिलाओं के प्रति समाज के अन्यायपूर्ण रवैये को दर्शाया गया है। कहानी निर्मला की है, जिसका विवाह उम्रदराज व्यक्ति से कर दिया जाता है, और उसकी जिंदगी दुखों से घिर जाती है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को बेहद प्रभावी तरीके से चित्रित किया है। “निर्मला” महिलाओं के अधिकारों और उनके संघर्षों पर एक गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो आज भी प्रासंगिक है।
ISBN: 8128400088

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पुस्तक के बारे में

अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्त उपन्यास है। यह उपन्यास नवम्बर, 1925 से नवम्बर, 1926 तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ, किन्तु यह इतना यथार्थवादी है कि 60 वर्षों के उपरांत भी समाज की कुरीतियों का आज भी उतना ही सटीक एवं मार्मिक चित्र प्रस्तुत करता है।
‘निर्मला’ एक ऐसी अबला की कहानी है जिसने अपने भावी जीवन के सपनों को अल्हड़ कल्पनाओं में संजोया किन्तु दुर्भाग्य से उन्हें साकार नहीं होने दिया। निर्मला की शादी से पहले उसके पिता की मृत्यु हो जाती है। यह मृत्यु लड़के वालों को यह विश्वास दिला देती है कि अब उतना दहेज नहीं मिलेगा जितने की उन्हें अपेक्षा थी… आखिर निर्मला का विवाह एक अधेड़ अवस्था के विधुर से होता है।
इस उपन्यास की एक अनन्य विशेषता – करुणा प्रधान चित्रण में कथानक अन्य रसों से भी सराबोर है।

लेखक के बारे में

धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

“निर्मला” उपन्यास का मुख्य विषय क्या है?

निर्मला का मुख्य विषय सामाजिक कुप्रथाएं, विशेष रूप से दहेज प्रथा, और उससे उत्पन्न पारिवारिक समस्याएं हैं। यह उपन्यास सामाजिक अन्याय, महिलाओं की दुर्दशा और उनके जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दर्शाता है।

“निर्मला” किसने लिखी है?

निर्मला उपन्यास हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया है, जिन्हें समाजिक और यथार्थवादी लेखन के लिए जाना जाता है।

“निर्मला” उपन्यास की मुख्य पात्र कौन है?

उपन्यास की मुख्य पात्र निर्मला है, जो एक सुंदर, समझदार और शिक्षित महिला है, लेकिन सामाजिक कुप्रथाओं के कारण उसका जीवन अत्यंत कठिनाइयों से भर जाता है।

निर्मला का विवाह किससे और किस परिस्थिति में होता है?

निर्मला का विवाह एक अधेड़ व्यक्ति, मुंशी तोताराम से होता है, जो उसकी पहली शादी टूट जाने और दहेज न मिलने के कारण मजबूरी में तय किया जाता है।

“निर्मला” उपन्यास में प्रेमचंद ने किस सामाजिक समस्या को उजागर किया है?

मुंशी प्रेमचंद ने निर्मला में दहेज प्रथा, उम्र में असमान विवाह, और समाज में महिलाओं की स्थिति जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर किया है।

क्या “निर्मला” आज के समाज में भी प्रासंगिक है?

हां, निर्मला आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह उपन्यास सामाजिक कुप्रथाओं, खासकर दहेज प्रथा और महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाता है, जो आज भी समाज के कुछ हिस्सों में देखी जा सकती हैं।

Additional information

Weight 0.150 g
Dimensions 21.59 × 13.97 × 1.4 cm
Author

Munshi Premchand

ISBN-13

9788128400087

ISBN-10

8128400088

Pages

160

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

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