Na Janam Na Mrityu : Bhagwat Gita Ka Manovigyan – Bhag-2 (न जन्म न मृत्यु : भगवत गीता का मनोविज्ञान – भाग-2)
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उत्पाद विवरण
न जन्म न मृत्यु: भगवत गीता का मनोविज्ञान – भाग-2″ में लेखक ने भगवत गीता के गहरे मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण किया है। यह पुस्तक जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने में मदद करती है और यह दर्शाती है कि आत्मा अमर है। ओशो के विचारों के माध्यम से, पाठक को जीवन की अनंतता और मानसिक शांति के विषय में गहन समझ प्राप्त होती है
कर्म-संन्यास विश्राम की अवस्था है, आलस्य की नहीं। कर्मयोग और कर्म-संन्यास दोनों के लिए शक्ति की जरूरत है। दोनों के लिए। आलसी दोनों नहीं हो सकता। आलसी कर्मयोगी तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि कर्म करने की ऊर्जा नहीं है। आलसी कर्मत्यागी भी नहीं हो सकता, क्योंकि कर्म के त्याग के लिए भी विराट ऊर्जा की जरूरत है। जितनी कर्म को करने के लिए जरूरत है, उतनी ही कर्म को छोड़ने के लिए जरूरत है। हीरे को पकड़ने के लिए मुट्ठी में जितनी ताकत चाहिए, हीरे को छोड़ने के लिए और भी ज्यादा ताकत चाहिए। देखें छोड़ कर, तो पता चलेगा। एक रुपए को हाथ में पकड़ें। पकड़े हुए खड़े रहें सड़क पर, और फिर छोड़ें। पता चलेगा कि पकड़ने में कम ताकत लग रही थी, छोड़ने में ज्यादा ताकत लगरही है।
लेखक के बारे में
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
न जन्म न मृत्यु: भगवत गीता का मनोविज्ञान – भाग-2″ का मुख्य विषय क्या है?
इस पुस्तक का मुख्य विषय जीवन और मृत्यु के चक्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना है। लेखक ने आत्मा की अमरता और जीवन के वास्तविक अर्थ पर गहराई से चर्चा की है, जो पाठकों को आत्म-जागरूकता की ओर प्रेरित करता है।
भगवत गीता का मनोविज्ञान क्या है?
भगवत गीता का मनोविज्ञान आत्मा, जीवन, और मन की गहराइयों को समझने का प्रयास करता है। यह पुस्तक हमें यह सिखाती है कि मृत्यु केवल एक परिवर्तन है और आत्मा कभी नहीं मरती, बल्कि वह हमेशा अस्तित्व में रहती है।
क्या न जन्म न मृत्यु: भगवत गीता का मनोविज्ञान – भाग-2″ में ओशो के विचार शामिल हैं?
हाँ, यह पुस्तक ओशो के विचारों का समावेश करती है, जो गीता के शिक्षाओं को आधुनिक मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से जोड़ती है। ओशो का दृष्टिकोण जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने में मदद करता है।
जीवन का वास्तविक अर्थ कैसे समझाया गया है?
जीवन के अर्थ को आत्मा की अमरता और मानवता की उच्चतर स्थिति से जोड़ते हुए यह बताते हैं कि जीवन का अर्थ केवल भौतिकता में नहीं है, बल्कि आत्मिक अनुभवों में है।
क्या यह आत्मज्ञान की दिशा में मदद करती है?
हाँ, यह आत्मज्ञान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ओशो के विचारों के माध्यम से, पाठक अपनी आंतरिक स्थिति को समझने और आत्मिक विकास के लिए प्रेरित होते हैं।
Additional information
Weight | 0.300 g |
---|---|
Dimensions | 21.59 × 13.97 × 2.2 cm |
Author | Osho |
ISBN-13 | 9788189182915 |
ISBN-10 | 8189182919 |
Pages | 344 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon |
कर्म-संन्यास विश्राम की अवस्था है, आलस्य की नहीं। कर्मयोग और कर्म-संन्यास दोनों के लिए शक्ति की जरूरत है। दोनों के लिए। आलसी दोनों नहीं हो सकता। आलसी कर्मयोगी तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि कर्म करने की ऊर्जा नहीं है। आलसी कर्मसंन्यासी भी नहीं हो सकता, क्योंकि कर्म के त्याग के लिए भी विराट ऊर्जा की जरूरत है। जितना कर्म को करने के लिए जरूरी है, उतना ही कर्म को छोड़ने के लिए जरूरी है। हिरो को पकड़ने के लिए मुट्ठी में जितनी ताकत चाहिए, हिरो को छोड़ने के लिए और भी ज्यादा ताकत चाहिए। देखें छोड़ कर, तो पता चलेगा। एक रूपए को हाथ में पकड़ें। पकड़े हुए खड़े रहें सड़क पर, और फिर छोड़ें। पता चलेगा कि पकड़ने में कम ताकत लग रही थी, छोड़ने में ज्यादा ताकत लग रही है।
— ओशो
ISBN10-8189182919
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